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सोमवार, 7 जून 2010

अमिताभ बच्चन का कमरा


सितम्बर
०९ की बात है ,मैं बदरीनाथ मैं थी । हमे 'नर नारायण'होटल पसंद आया.रेसेपशनिस्ट ने कहा कि एक सूट खाली है.सामने अमिताभ बच्चन जी कि फोटो लगी थी जिसमें वह इसी होटल में चाय पी रहे थे,तभी रिसेप्शनिस्ट बोला कि इसी सुइट में अमित जी रुके थे .यह सुनते ही मैंने फटाफट उस सुइट के लिए हाँ कर दी.वेटर हमे रूम में ले गया ,ख़ुशी के मारे पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे थे .सोच कर ख़ुशी हो रही थी कि अपने प्रिय हीरो भी यहीं रुके थे .कमरे में घूम घूम कर कल्पना कर रही थी कि कैसे अमित जी इस खिड़की से बाहर देखते होंगे ,वह कहाँ बैठे होंगे आदि -आदि.सारा वातावरण अमिताभमय हो गया था.इसी ख़ुशी में झट से पति को और बेटे को फ़ोन घुमाया और चहकते हुए सारी राम कहानी कह डाली ,बेटे को मेरे साथ न आने का अफ़सोस हुआ .परम आनंद लेते हुए दो-चार फ्रिएँड्स को भी फ़ोन किया और बताया 'पता है जिस रूम में अमिताभ बच्चन रुके थे उसी रूम में मैं रह रही हूं । सबको फ़ोन करने के बाद पूरे कमरे की कई तस्वीरें निकाल डाली.थोड़ी देर बाद जब वेटर खाना लाया तो कहने लगा कि अमित जी तो बस इस खिड़की से सामने मंदिर को ही देखते रहते थे ,मैं और खुश हो गयी क्यूंकि मैं भी उस खिड़की से मंदिर ही देख रही थी.लगा कि अपने हीरो और मुझमें कुछ तो सामान है .अमित जी के सपने लेते हुए कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला.सुबह उठ कर फिर खिड़की से ही मंदिर के दर्शन किये और टहलने के लिए बाहर चल दी .अभी कम्र्रे में ताला लगा ही रही थी कि सामने वाले कमरे में से किसी कि जोर जोर से फ़ोन पर बात करने कि आवाज सुनाई दी ,पता है क्या सुना ? वह आदमी किसी से कह रहा था "पता है जिस कमरे में मैं रूका हूँ उसी में अमिताभ .................................................."सुनते ही सारी ख़ुशी काफूर हो गयी.सामने ही रात वाला वेटर
दिखाई दिया उसे बुलया और धमकाते हुए उससे पूछा कि असलियत क्या है?वह बेशर्म अपनी हंसी दबाते हुए बोला
कि उस दिन मौसम ख़राब हो गया था जिस कारन हेलीकाप्टर उड़ नहीं पाया तो मौसम ठीक होने तक अमित जी और अमर सिंह ने इस होटल के रेस्टोरेंट में चाय पी थी .मौसम ठीक होते ही वह वापिस चले गए थे.में अपनी झेंप मुस्कुराहट में छुपाती हुई सैर को चल दी.

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

दो घंटे से कोशिश कर रही हूँ की कुछ तो लिख डालूं पर अभी यह माध्यम नया है .लिखना हिंदी मे है पर पहले रोमन में लिखो कितना पीड़ादायक है यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है .हार माननी सीखी नहीं है आज तो कुछ पोस्ट करना ही है.यही सही।
रात के एक बजे नींद गर्मी के कारण खुल गयी तब से ब्लॉग बना रही हूँ .देहरादून जैसा शहर गर्मी से झुलस रहा है ,पानी की कमी है ,आज ही एक मेडिकल कॉलेज ने पानी की कमी के कारण स्टुडेंट्स को एक महीने की छूट्टी दी है.पानी के लिए कहीं झगड़े भी हो रहे हैं .मेरे शहर का बुरा हाल है.पर परवाह किसे है ,हर रोज अनगिनत मकान - दूकान बन रहे है .